खन मिट्टी रस्म: कुंबी मराठा शादियों की महत्वपूर्ण रस्मों मे से एक

भारतीय समाज विविध परंपराओं और रीति-रिवाजों से समृद्ध है। मराठा समुदाय की शादियों में निभाई जाने वाली खन मिट्टी रस्म इसकी अनोखी और महत्वपूर्ण परंपराओं में से एक है। यह रस्म न केवल सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है, बल्कि सामूहिकता और श्रद्धा का भी प्रतीक है। आइए, इस रस्म के बारे में विस्तार से जानें।

खन मिट्टी रस्म क्या है?

खन मिट्टी रस्म मराठा शादियों में महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली एक विशेष परंपरा है। इस रस्म के दौरान महिलाएं टोकनियों में मिट्टी लेकर आती हैं, जिसका उपयोग मंडप बनाने, चूल्हा बनाने और शादी से जुड़ी अन्य रस्मों में किया जाता है।

रस्म की प्रक्रिया

  1. दिशा का निर्धारण: खन मिट्टी रस्म में यह तय करना कि मिट्टी किस दिशा से लाई जाएगी, राशि के आधार पर होता है। यह राशि पंडित द्वारा निर्धारित की जाती है। उस राशि के अनुसार चुनी गई महिला को इस रस्म का नेतृत्व करने का सौभाग्य मिलता है।
  2. महिलाओं की तैयारी: रस्म शुरू होने से पहले, चुनी गई महिला को चौकोर पटे (लकड़ी का पटिया) पर बैठाया जाता है। फिर, उसे हल्दी, कुमकुम और अक्षत का टीका लगाया जाता है।
  3. टोकनी पूजा: इस रस्म में पांच टोकनियां शामिल होती हैं, जिनकी पूजा महिलाएं करती हैं।
  4. मिट्टी लाने की प्रक्रिया: • पंडित द्वारा निर्धारित दिशा में महिलाएं गाने और भजन गाते हुए जाती हैं। • हर महिला अपनी टोकनी सिर पर रखती है और साथ में आरती भी ले जाती है। • निर्धारित दिशा में किसी खेत से थोड़ी मिट्टी टोकनियों में भरी जाती है।
  5. मिट्टी का वापसी समारोह: मिट्टी लेकर महिलाएं नाचते-गाते हुए घर वापस आती हैं। यह दृश्य न केवल परंपरा को दर्शाता है, बल्कि महिलाओं की सामूहिकता और उत्साह को भी दिखाता है।

रस्म का सांस्कृतिक महत्व

खन मिट्टी रस्म कुंबी मराठा समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। यह परंपरा:

  • पवित्रता और शुद्धता: मंडप और चूल्हे के लिए लाई गई मिट्टी को शुभ और पवित्र माना जाता है।
  • सामूहिकता: यह रस्म समुदाय की महिलाओं के एकजुट होकर कार्य करने की भावना को दर्शाती है।
  • परंपरा का निर्वाह: इस रस्म के माध्यम से अगली पीढ़ी को संस्कृति और परंपराओं का महत्व सिखाया जाता है।

निष्कर्ष

खन मिट्टी रस्म मराठा शादियों की एक अनूठी परंपरा है, जो इस समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है। यह रस्म न केवल पारंपरिक विधियों को निभाने का माध्यम है, बल्कि सामुदायिकता और उत्सव का प्रतीक भी है।

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