मराठी शादी की परंपराओं में हर अनुष्ठान और हर प्रतीकात्मक तत्व का अपना एक विशेष महत्व है। इनमें से एक है “मुंडा-मुंडी“
जो मंडप के दो मुख्य स्तंभों को संदर्भित करता है। ये स्तंभ न केवल मंडप के संरचनात्मक आधार होते हैं, बल्कि इन्हें विवाह की पवित्रता और स्थायित्व का प्रतीक भी माना जाता है।
मुंडा-मुंडी के मुख्य पहलू
1. राशि पर आधारित चयन:
मुंडा और मुंडी का चयन दूल्हा और दुल्हन की राशियों के आधार पर किया जाता है। इसे शुभ संकेत माना जाता है, ताकि विवाह में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन बना रहे।
2. सामग्री (पेड़ की लकड़ी):
मुंडा और मुंडी ये दो स्तंभ होते है, जो मंडप की मे लगने अन्य स्तंभ के साथ रहती है। ये विशेष प्रकार के पेड़ों, जैसे उमर (अंजीर का पेड़) या कुमीन (कैरवी का पेड़) की दो डाली होती हैं। इसे ही मुंडा और मुंडी कहते है।
इन पेड़ों को पवित्र माना जाता है, मंढव का ढ़ाचा खड़ा करने से पहले इन्ही की पूजा होता है।
- उमर (अंजीर का पेड़): दीर्घायु और समृद्धि का प्रतीक।
- कुमीन (कैरवी का पेड़): पवित्रता और स्थायित्व का प्रतीक।
इन पवित्र पेड़ों का उपयोग विवाह के लिए मंगलकारी और शुभ माना जाता है।
3. स्थापना की प्रक्रिया:
मंडप में मुंडा और मुंडी को शुभ मुहूर्त में मंत्रोच्चार के साथ स्थापित किया जाता है। यह प्रक्रिया मंडप को आध्यात्मिक रूप से पवित्र बनाती है।
4. सांस्कृतिक महत्व:
मराठी विवाह में मुंडा-मुंडी के बिना मंडप को अधूरा माना जाता है। यह केवल एक संरचनात्मक आधार नहीं है, बल्कि वर-वधू के नए जीवन में स्थिरता, शक्ति और आशीर्वाद का प्रतीक भी है।
मराठी विवाह में मंडप का महत्व
मराठी संस्कृति में मंडप को ब्रह्मांड का प्रतीक माना गया है। मुंडा-मुंडी इस ब्रह्मांड के दो स्तंभ हैं, जो सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली का प्रतीक होते हैं। ये विवाह के आयोजन को पवित्र और मंगलमय बनाते हैं।
निष्कर्ष:
मध्य प्रदेश के लोणारी कुंबी मराठी विवाह की यह परंपरा उनकी गहरी सांस्कृतिक जड़ों और धार्मिक मान्यताओं को दर्शाती है। “मुंडा-मुंडी” के रूप में मंडप के ये स्तंभ न केवल विवाह की स्थिरता का प्रतीक हैं, बल्कि यह विश्वास भी करते हैं कि इनसे वर-वधू का जीवन खुशहाल और समृद्ध होगा।