हर समाज में विवाह को स्वीकृति देने और पक्का करने के लिए विभिन्न रस्में निभाई जाती हैं। ये रस्में समुदाय, परंपरा और क्षेत्र के अनुसार भिन्न हो सकती हैं, लेकिन इनका उद्देश्य विवाह को सामाजिक रूप से स्वीकृत करना होता है।
मध्य प्रदेश के लोणारी कुंबी मराठी समाज में शादी से पहले सुखा टीका और गीला टीका नामक दो महत्वपूर्ण रस्में होती हैं, जो विवाह को औपचारिक मान्यता प्रदान करती हैं।
सुखा टीका और गीला टीका के प्रमुख बिंदु:-
1. सुखा टीका
जब वर-वधू एक-दूसरे को पसंद कर लेते हैं और उनके परिवार विवाह के लिए सहमत होते हैं, तो इसे औपचारिक रूप से मान्यता देने के लिए सुखा टीका की रस्म संपन्न की जाती है।
सूखा टीका के प्रमुख बिंदु:
- यह एक छोटा और पारिवारिक आयोजन होता है, जिसमें केवल नजदीकी रिश्तेदार ही शामिल होते हैं।
- इस रस्म में वधू के परिवार द्वारा वर को और वर के परिवार द्वारा वधू को शगुन के रूप में नकद राशि या उपहार भेंट किए जाते हैं।
- यह एक सरल और औपचारिक रस्म होती है, जिसमें किसी विशेष पूजा-पद्धति या विधि-विधान की आवश्यकता नहीं होती।
- इसका मुख्य उद्देश्य दोनों परिवारों द्वारा विवाह की सहमति को सार्वजनिक रूप से घोषित करना होता है।
- इस रस्म को शुभ संकेत माना जाता है, जो विवाह के अगले चरण की ओर बढ़ने का प्रतीक होता है।
2. गीला टीका
गीला टीका सुखा टीका के बाद किया जाता है और इसे विवाह से पहले का एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है।
गीला टीका के प्रमुख बिंदु:
- कार्यक्रम की भव्यता: गीला टीका का आयोजन बहुत ही भव्य रूप से किया जाता है, जिसमें परिवार और समाज के लोग एकत्रित होते हैं।
- टीका का महत्व: इस रस्म में वर और वधू के माथे पर गीला कुमकुम लगाया जाता है। यह न सिर्फ सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, बल्कि विवाह में एक पवित्रता का आभास भी प्रदान करता है।
- विशेष पूजा और विधि-विधान: गीला टीका के दौरान विशेष पूजा अर्चना की जाती है, जिसमें पारंपरिक विधियाँ होती हैं। यह रस्म विवाह के शुभ आरंभ का संकेत होती है।
- उपहारों की परंपरा: इस रस्म में वर और वधू को पारंपरिक वस्त्र, मिठाइयाँ और अन्य उपहार दिए जाते हैं, जो उनके नए जीवन की शुरुआत में शुभता और समृद्धि लाने का प्रतीक होते हैं।
सुखा टीका और गीला टीका मे अंतर:-
सुखा टीका और गीला टीका दोनों ही भारतीय विवाह संस्कारों के महत्वपूर्ण हिस्से हैं, लेकिन इनमें प्रमुख अंतर उनके उपयोग, विधि और सांस्कृतिक महत्व में होता है।
हालांकि, इन दोनों रस्मों में विधि, पूजन प्रक्रिया और प्रतीकों का अंतर होता है।

सुखा टीका
गीला टीका
शुभ कार्य से पहले भगवान श्री गणेश का आवाहन किया जाता है। | शुभ कार्य से पहले भगवान श्री गणेश का आवाहन किया जाता है। |
वर-वधू के दाएँ हाथ की ओर सुपारी पर गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती है, जिसे पान के पत्ते और अक्षत (चावल) पर रखा जाता है। | सुपारी पर गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती है, जिसे पान के पत्ते और अक्षत (चावल) पर रखा जाता है। |
तीन कलश रखे जाते हैं—एक में जल भरकर भगवान को स्नान करवाया जाता है, दूसरे पर दीप प्रज्वलित किया जाता है, और तीसरे पर नारियल रखा जाता है। | तीन कलश रखे जाते हैं—एक में जल भरकर भगवान को स्नान करवाया जाता है, दूसरे पर दीप प्रज्वलित किया जाता है, और तीसरे पर नारियल रखा जाता है। |
विशेष रूप से नाई को बुलाया जाता है, जो देवताओं की पूजा कर अगरबत्ती दिखाता है। जिसके बाद वर-वधू गणेशजी की पूजा कर चौरंग पर बैठते हैं। | गीले टीके मे नाई या फिर कोई जानकार व्यक्ति द्वारा इस कार्यक्रम में मार्गदर्शन करता है। |
वर-वधू के चौरंग पर बैठने पर उनके हाथों मे रुमाल पर नारियल रखा जाता है, जिस पर धागा बंधा होता है। | वर-वधू के चौरंग पर बैठने पर उन्हे नए वस्त्र भेट किए जाते है, जो वो इस गीले टीके मे पहनेंगे। |
वधू के भाई द्वारा वर को सीधा टीका लगाया जाता है और वर के भाई द्वारा वधू को छोटा टीका (बिंदी स्वरूप) लगाया जाता है। (टीका आड़ा भी लग सकता है, ये जानकार व्यक्ति पर निर्भर है।) | इस आयोजन मे वर-वधू को आड़ा टीका लगाया जाता है, जो सुखद और मंगलमय जीवन की कामना का प्रतीक होता है। |
वधू के हाथ में फूटा हुआ नारियल रुमाल पर रखा जाता है, जिसपर रेशम का धागा बंधा होता है। जिसे “डोल” कहते हैं और इस रस्म को “वटी भरना” कहा जाता है। | वधू के हाथ में फूटा हुआ नारियल रुमाल पर रखा जाता है, जिसपर रेशम का धागा बंधा होता है। |
वर के हाथ मे सेगा नारियल दिया जाता है जिसपर रेशम का धागा (जिसे करदोड़ा कहा जाता है) बंधा होता है। | वर के हाथ मे सेगा नारियल दिया जाता है जिसपर रेशम का धागा बंधा होता है। |
इस आयोजन मे दिए गए नारियल को सिर्फ वर-वधू को ही खाना होता है। | इस आयोजन मे दिए गए नारियल को सिर्फ वर-वधू को ही खाना होता है। |
सूखा टीका
- शुभ कार्य से पहले भगवान श्री गणेश का आवाहन किया जाता है।
- वर-वधू के दाएँ हाथ की ओर सुपारी पर गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती है, जिसे पान के पत्ते और अक्षत (चावल) पर रखा जाता है।
- तीन कलश रखे जाते हैं—एक में जल भरकर भगवान को स्नान करवाया जाता है, दूसरे पर दीप प्रज्वलित किया जाता है, और तीसरे पर नारियल रखा जाता है।
- विशेष रूप से नाई को बुलाया जाता है, जो इस कार्यक्रम का नेतृत्व करता है, एव पूजा के लिए गणेश भगवान एव नौ ग्रहों की स्थापना करता है।
- वर-वधू चौरंग पर बैठते हैं और समीप मे स्थापित गणेश भगवान एव नौ ग्रहों की पूजा करते हैं।
- वर के हाथ में रुमाल पर नारियल रखा जाता है, जिस पर रेशम का धागा बंधा होता है।
- वधू के भाई द्वारा वर को सीधा टीका लगाया जाता है और वर के भाई द्वारा वधू को छोटा टीका (बिंदी स्वरूप) लगाया जाता है।
- वधू के हाथ में फूटा हुआ नारियल रुमाल पर रखा जाता है, जिसे “डोल” कहते हैं और इस रस्म को “वटी भरना” कहा जाता है।
- इस टीके मे सबसे महत्वपूर्ण बात ये है की, दिए गए नारियल को सिर्फ वर-वधू को ही खाना होता है।
गीला टीका
- वर-वधू को आड़ा टीका लगाया जाता है, जो सुखद और मंगलमय जीवन की कामना का प्रतीक होता है।
- वर-वधू के चौरंग पर बैठने पर उन्हे नए वस्त्र भेट किए जाते है, जो वो इस गीले टीके मे पहनेंगे।
- गीले टीके को सूखे टीके की अपेक्षा भव्य रूप से मनाते है।
- इस टीके मे सबसे महत्वपूर्ण बात ये है की, दिए गए नारियल को सिर्फ वर-वधू को ही खाना होता है।
अन्य समुदायों में विवाह पूर्व रस्में
1. उत्तर भारतीय (हिंदू) शादियाँ
- रोका: यह विवाह की पहली स्वीकृति होती है, जो सुखा टीका जैसी रस्म मानी जाती है।
- सगाई (टीका): इसमें वर को चंदन या कुमकुम का टीका लगाया जाता है और उपहार दिए जाते हैं। यह गीला टीका जैसा होता है।
2. राजस्थानी और मारवाड़ी शादियाँ
- थापा टीका: यह सूखा टीका जैसा होता है, जिसमें वर को हल्दी-कुमकुम लगाया जाता है।
- पक्का टीका: इसमें पूजा की जाती है और वर को औपचारिक रूप से विवाह के लिए स्वीकृति दी जाती है।
3. गुजराती शादियाँ
- गोल-धना: यह रोका जैसी रस्म होती है, जिसमें वर-वधू के परिवार एक-दूसरे को मिठाई और उपहार देते हैं।
- मधु-पार्का: शादी के दिन वर के स्वागत के लिए दूध, दही, घी, शहद और चीनी का उपयोग कर टीका किया जाता है।
4. पंजाबी शादियाँ
- रोका और चूड़ा रस्म: विवाह पक्का करने के लिए निभाई जाती हैं।
- मिलनी: विवाह के दिन दोनों परिवारों के बुजुर्ग एक-दूसरे को टीका लगाकर और उपहार देकर स्वागत करते हैं।
निष्कर्ष
हर समुदाय में विवाह से पहले कुछ रस्में निभाई जाती हैं, जो शादी को सामाजिक स्वीकृति प्रदान करती हैं। लोणारी कुंबी मराठी समाज में सुखा टीका और गीला टीका दो महत्वपूर्ण रस्में हैं, जबकि अन्य समुदायों में इन्हें रोका, सगाई, पक्का टीका, थापा टीका, आदि नामों से जाना जाता है। ये रस्में पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने और परिवारों के बीच संबंध मजबूत करने का कार्य करती हैं।