हिंदू धर्म में चंद्र कैलेंडर के आधार पर महीनों और तिथियों का निर्धारण किया जाता है। पौष मास हिंदू पंचांग का दसवां महीना है, जो मार्गशीर्ष (अगहन) के बाद और माघ मास से पहले आता है।
हर चंद्र मास को दो पक्षों में बांटा गया है:
- पौष शुक्ल पक्ष
- यह पौष मास का उजाला पक्ष है, जिसमें चंद्रमा दिन-प्रतिदिन बढ़ता है और पूर्णिमा (पूर्ण चंद्रमा) के साथ समाप्त होता है।
- शुक्ल पक्ष को शुभ माना जाता है और इसमें धार्मिक कार्यों का महत्व अधिक होता है।
- पौष कृष्ण पक्ष
- यह पौष मास का अंधकार पक्ष है, जिसमें चंद्रमा दिन-प्रतिदिन घटता है और अमावस्या (नई चंद्रमा) के साथ समाप्त होता है।
- कृष्ण पक्ष में साधारणतः साधना और आत्म-विश्लेषण के कार्य किए जाते हैं।
पौष शुक्ल और पौष कृष्ण में अंतर
पौष शुक्ल | पौष कृष्ण |
चंद्रमा बढ़ता है (शुक्ल पक्ष)। | चंद्रमा घटता है (कृष्ण पक्ष)। |
उजाले का प्रतीक। | अंधकार का प्रतीक। |
शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त। | साधना और ध्यान के लिए उपयुक्त। |
पूर्णिमा पर समाप्त। | अमावस्या पर समाप्त। |
पौष मास में विवाह क्यों नहीं होते?
1. धार्मिक मान्यता:
पौष मास को भगवान विष्णु का ध्यान और साधना करने का समय माना गया है। इस समय को देवताओं का विश्राम काल भी कहते हैं। विवाह जैसे मांगलिक कार्यों के लिए देवताओं का जागृत होना आवश्यक है।
2. ऋतु और वातावरण का प्रभाव:
पौष मास में ठंड अपने चरम पर होती है। इस दौरान यात्रा और विवाह समारोह के लिए अनुकूल मौसम नहीं माना जाता, क्योंकि लोग आसानी से बीमार पड़ सकते हैं।
3. ज्योतिषीय दृष्टिकोण:
पौष मास में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, जो हिंदू धर्म में संक्रांति का समय माना जाता है। इस दौरान सूर्य कमजोर स्थिति में होता है, जो शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं होता।
पौष शुक्ल और विवाह से जुड़े कार्यों की मान्यता
पौष शुक्ल को धार्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है, लेकिन पूरे पौष मास में विवाह और अन्य मांगलिक कार्य वर्जित हैं। इसका मुख्य कारण देवताओं का ध्यान, मौसम की कठिनाई और ज्योतिषीय स्थिति है।
निष्कर्ष
पौष शुक्ल और पौष कृष्ण का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है। पौष मास को ध्यान और साधना के लिए आदर्श समय माना गया है। विवाह जैसे शुभ कार्यों के लिए माघ मास का इंतजार करना चाहिए, जब देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।