मध्य प्रदेश के लोनारी कुंभी मराठा समुदाय में विवाह के समय निभाई जाने वाली एक और महत्वपूर्ण रस्म है, जिसे “मंढविनी” या “भाल देव” भी कहते हैं। यह रस्म कुल देवता और पूर्वजों की पूजा के माध्यम से वर-वधू के नए जीवन की शुभ शुरुआत का प्रतीक है।
मंढविनी रस्म का महत्व
मंढविनी रस्म में कुल देवता और पूर्वजों का आह्वान किया जाता है ताकि उनका आशीर्वाद वर-वधू को प्राप्त हो सके। यह परंपरा न केवल सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है बल्कि परिवार और समाज के बीच आपसी जुड़ाव को भी प्रकट करती है।
मंढविनी रस्म की प्रक्रिया
मंढविनी रस्म की प्रक्रिया विवाह के मंडप वाले दिन शुरू होती है, जब परिवार के सभी सदस्यों की स्नान प्रक्रिया पूरी हो जाती है। इसके बाद वर-वधू के घर वाले अपने कुल देवता और पूर्वजों की पूजा के लिए पूजा स्थल तैयार करते हैं।
पूजा स्थल के पास एक धागे में आकुआ के फूल और नारियल बांधा जाता है। पूजा के लिए गेहूं और चावल का लेप तैयार किया जाता है जिसे “रास” कहा जाता है। रास के चारों कोनों पर आटे से बने दिए (जिसे नाँदोंलए कहा जाता है) रखा जाता है और उसके ऊपर दिया जलाया जाता है।
अब इस रास पर लाल कपड़ा बिछाया जाता है, जिसपर देवताओं को बिठालते है इसे “खरवा” कहते हैं। देवताओं को बिठाने के बाद उन्हे नहलाया जाता है और उनका तिरथ परिवार के सदस्यों के बीच वितरित किया जाता है।
अब एक बर्तन में तेल में नारंगी सिंदूर को भिगोकर लेप तैयार किया जाता है, जिसे देवताओं पर लगाया जाता है। पूजा के दौरान देवताओं के नाम से नारियल चढ़ाए जाते हैं और फिर उसे फोड़ कर परिवार के सदस्यों में बांट दिया जाता है।
इसके बाद, बांस के डिब्बी में बड़े देव को रखा जाता है और पांच अलग-अलग गोत्रों के पुरुष उसे मंडप तक लेकर जाते हैं। इस प्रक्रिया में पानी से भरा लोटा साथ रखा जाता है। डिब्बी को दाएं घुमाते हुए बड़े देव पर पानी डाला जाता है और “कुल-कुल” बोलते हुए पांच फेरे लगाए जाते हैं।
पूजा समाप्त होने पर, देवताओं को बांस की पेटी में बैठाकर लाल कपड़े से बांध दिया जाता है। रास, जिस पर देवताओं को बैठाया गया था, को पूजा करने वाले की पत्नी अपने पल्लू में लेकर घर की अनाज की कोठी में डाल देती है। इसे घर की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
मंढविनी रस्म का सांस्कृतिक महत्व
- यह रस्म केवल धार्मिक प्रक्रिया नहीं है बल्कि परिवार और समाज के सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक है।
- देवताओं की स्थापना और उनकी पूजा न केवल वर-वधू के जीवन को शुभ बनाती है, बल्कि परिवार में समृद्धि और शांति भी लाती है।